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जलियांवाला बाग़ हत्याकांड
आज भी नहीं भूलता वो, क्रूरता और नृशंसता से भरा काला दिन
वो ज़ख़्म 103 साल बाद भी नहीं भरे, जो इतिहास में लिख गए,

जलियांवाला बाग हत्याकांड कौन भूला होगा, किसे नहीं याद होगा
अंग्रेज़ी हुकूमत के ताबूत में पहली कील की तरह, जाने अंजाने गड़ गए,

13 अप्रैल 1919, जनरल डायर की क्रूरता का एतिहासिक उदाहरण
बैसाखी पर्व का पवित्र दिन, हज़ारों भारतीय मौत के घाट उतार दिये गए,

महिलाओं, बच्चों, इंसानियत पर रियायत न कर, खून से नहला दिया
रोलेट एक्ट के विरोध में ज़िंदा न बचे, जो विरोध के लिए मिल एक हुए,

रास्ता था निकलने का एक, चारों तरफ़ से घिर गए, निकल न सके
सैंकड़ों गोलियों से भून दिये, लहूलुहान हुए, बेवक़्त बेमौत मारे गए,

मौत सामने थी और बच निकलने की जब कोई राह नहीं सूझी
जान बचाने के लिए, इंसान ज़िंदा ही कुएँ में कूदने पर मजबूर हुए,

10 मिनट में 1650 राउंड गोलियाँ चला, सभी को मौत के घाट उतारा
भागकर जान अपनी बचा न सके, लाशों के ढेर हर ओर बाग़ में बन गए,

जनरल डायर का यह शर्मनाक किस्सा इतिहास में आज भी दर्ज़ है
भारत माता की शान में बलिदान अपना, इतिहास में शुमार कर गए!


© सुधा सिंह 💐💐