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लापता
चुभ रहा हर एक ज़र्रा
चैन भी है लापता
गुफ्तगू करता भी किससे
मन मे तो बस है गिला
बस नुमाइश भाव की
भंगिमा अधूरी रह गयी
कोसा था जिस एक कल को
पल था ठहरा फिर वही
जानता था अंत सबका
फिर भी लिपट सा ही गया
कुछ तो लहरो ने डुबाया
कुछ तो हम ही खुद गिरे
मंजरो की इक कड़ी सी
फिर से आकर है खड़ी
न सहन जो ऐसी पीड़ा
भोगते है फिर नयन।
चैन भी है लापता
गुफ्तगू करता भी किससे
मन मे तो बस है गिला
बस नुमाइश भाव की
भंगिमा अधूरी रह गयी
कोसा था जिस एक कल को
पल था ठहरा फिर वही
जानता था अंत सबका
फिर भी लिपट सा ही गया
कुछ तो लहरो ने डुबाया
कुछ तो हम ही खुद गिरे
मंजरो की इक कड़ी सी
फिर से आकर है खड़ी
न सहन जो ऐसी पीड़ा
भोगते है फिर नयन।
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