चार जून
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
ये सब वक्त के हाथ है
चाहे जितना भी तू रहे दूर
ना बदलते मेरे जज़्बात हैं
मिले ना मिले विचार हमारे
ये अपने अपने खयालात हैं
© Poeत्रीباز
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
ये सब वक्त के हाथ है
चाहे जितना भी तू रहे दूर
ना बदलते मेरे जज़्बात हैं
मिले ना मिले विचार हमारे
ये अपने अपने खयालात हैं
© Poeत्रीباز
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