प्रश्न
वो निरंतर शीशे में देखती रहीं खुद को कुछ समय पश्चात उसे आभास हुआ जैसे उसके स्थान पे कोई और वहां उपस्थित है।
शीशे में उसका स्वरूप उसे एक घुटन में जलती लड़की का परिदृश्य दिखा रहा था।जीवन में लगातार जिसे असफलता मिल रही थी।चप्पल घिसी हुई और फटी हुई थी।
वो स्वांस के लिए तड़प रही थी।उसकी स्वांस आ नहीं पा रही थी।वो क्या करें वो यहीं सोच रही थी।वो अपना गला स्वयं ही घोटने का प्रयास करने लगी थी।
फिर जैसे अचानक वो यथार्थ में आ गई।उसने देखा शीशे में ऐसा कुछ नहीं है।वो स्वयं ही तो है।उसके दो हाथ है दो पैर है दो आंखे है वो किसी पे निर्भर नहीं है।
ये सत्य का बोध होना ही तो नया जन्म है।आज उसका पुनर्जन्म था।
#फ़ीनिक्सपुनर्जन्म
© ©Farah Naseem
शीशे में उसका स्वरूप उसे एक घुटन में जलती लड़की का परिदृश्य दिखा रहा था।जीवन में लगातार जिसे असफलता मिल रही थी।चप्पल घिसी हुई और फटी हुई थी।
वो स्वांस के लिए तड़प रही थी।उसकी स्वांस आ नहीं पा रही थी।वो क्या करें वो यहीं सोच रही थी।वो अपना गला स्वयं ही घोटने का प्रयास करने लगी थी।
फिर जैसे अचानक वो यथार्थ में आ गई।उसने देखा शीशे में ऐसा कुछ नहीं है।वो स्वयं ही तो है।उसके दो हाथ है दो पैर है दो आंखे है वो किसी पे निर्भर नहीं है।
ये सत्य का बोध होना ही तो नया जन्म है।आज उसका पुनर्जन्म था।
#फ़ीनिक्सपुनर्जन्म
© ©Farah Naseem