ये जो मुझमे मैं हु।
में जिदगी से क्या चाहता हूं।
ये में नही जनता।
जिंदगी मुझसे क्या चाहती है।
ये भी में नही जनता।
में तो बस उस रह पे
चलता चला जा रहा हु।
जो दूसरे मुझे दिखाते
जा रए है।
जिस दिशा में भेड़–बकरियो की
तरह सब चलते चले जा रए है
मेरा दिमाग एक कबूतर बन कर रह गया है जो खुद से कुछ नहीं करता बस दूसरों के इशारों पर चलता है ।
मैं क्या हूं ये कोई नहीं जानना चाहता।
मैं क्या हूं ये कोई नहीं जानना चाहता।
वो बस मुझ में खुद को देखना चाहते हैं
वो बस मुझ में खुद को देखना चाहते हैं
यह जो मुझ में मैं हूं
एक कोने में बैठा रहता हूं ।
मेरा मुझमें कुछ नई।
सब दूसरो न पहले से ही घेर रखा है।
मुझ में मेरी एक नहीं चलने देते
बस अपनी चलाए जाते हैं
समझना कोई नहीं चाहता
बस अपनी बात थोपना चाहते हैं
हमारे सपनों को गिरा कर
अपने सपनों का महल बनाना चाहते हैं
मैं तो मुझमें बचा ही नहीं
दूसरो की हाथो की कठपुतली
और जागीर बनकर रह गया हु।
बस एक खोखला वास बन कर रह गया हूं
जिसे बांसुरी समझकर सब अपने मन की धुन बजाना चाहते है।
हम क्या बनना चाहते है।
ये कोई नई जानना चाहता।
बस वो जो हमे बनना चाहते है।
बस उसी को हमारी सच्चाई बनाना चाहते है।
हमारे अस्तित्व को मिटाकर
अपना अस्तित्व बनाना चाहते हैं।
जिंदगी मुझसे क्या चाहती है
यह मैं नहीं जानता।
मैं जिंदगी से क्या चाहता हूं
खैर छोड़ो !!
घंटा किसी को फर्क पड़ता है
© abgi_rag poetries
ये में नही जनता।
जिंदगी मुझसे क्या चाहती है।
ये भी में नही जनता।
में तो बस उस रह पे
चलता चला जा रहा हु।
जो दूसरे मुझे दिखाते
जा रए है।
जिस दिशा में भेड़–बकरियो की
तरह सब चलते चले जा रए है
मेरा दिमाग एक कबूतर बन कर रह गया है जो खुद से कुछ नहीं करता बस दूसरों के इशारों पर चलता है ।
मैं क्या हूं ये कोई नहीं जानना चाहता।
मैं क्या हूं ये कोई नहीं जानना चाहता।
वो बस मुझ में खुद को देखना चाहते हैं
वो बस मुझ में खुद को देखना चाहते हैं
यह जो मुझ में मैं हूं
एक कोने में बैठा रहता हूं ।
मेरा मुझमें कुछ नई।
सब दूसरो न पहले से ही घेर रखा है।
मुझ में मेरी एक नहीं चलने देते
बस अपनी चलाए जाते हैं
समझना कोई नहीं चाहता
बस अपनी बात थोपना चाहते हैं
हमारे सपनों को गिरा कर
अपने सपनों का महल बनाना चाहते हैं
मैं तो मुझमें बचा ही नहीं
दूसरो की हाथो की कठपुतली
और जागीर बनकर रह गया हु।
बस एक खोखला वास बन कर रह गया हूं
जिसे बांसुरी समझकर सब अपने मन की धुन बजाना चाहते है।
हम क्या बनना चाहते है।
ये कोई नई जानना चाहता।
बस वो जो हमे बनना चाहते है।
बस उसी को हमारी सच्चाई बनाना चाहते है।
हमारे अस्तित्व को मिटाकर
अपना अस्तित्व बनाना चाहते हैं।
जिंदगी मुझसे क्या चाहती है
यह मैं नहीं जानता।
मैं जिंदगी से क्या चाहता हूं
खैर छोड़ो !!
घंटा किसी को फर्क पड़ता है
© abgi_rag poetries
Related Stories