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मौत एक सच था
मौत एक सच था

मैंने जो ज़िन्दगी जी, वो सब झूठ था। जब मेरे सुख दुख का हिसाब हुआ तो वो दोनों बराबर निकले। मैं जो ज़िन्दगी अपने हिसाब से जी रहा था, वो सब झूठ निकल। कुछ था ही नहीं मेरा, मौत ही सिर्फ एक सच था मेरा।

मैंने पहले सोचता था मैंने बहुत कुछ जीत लिया हैं। अब मैंने देख लिया हैं, जीतने वाला भी मैं था और हारने वाला भी मैं था। मैं कैसे भी चलता मेरे सफ़र का अन्त वो ही था। कुछ था ही नहीं मेरा, मौत ही सिर्फ एक सच था मेरा।

किस झूठ में ये दुनिया जी रहीं हैं, जब इस सच से पर्दा उठेगा। तब तक शरीर नाम का भ्रम खत्म हो चुका होगा, किसकी जीत, किसकी हार, बिना कारण की दौड़, ये सब क्या था। कुछ था ही नहीं मेरा, मौत ही सिर्फ एक सच था मेरा।
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