उनका दिल तो किसी और के पास था....By-The Sagar Raj Gupta 'kavi ji'...
वर्षों से मज़बूरी थी, मज़बूरी के कारण दूरी थी,
और उन दूरी में कही न कही आस था....
कैसे प्यार करते हम उन्हें ,उनका दिल तो किसी और के पास था।
मोहब्बत थी ज़नाब से हमे, इसीलिए तो हम उन्हें ख़ुदा मानते थे,
लाख धोखा दिया उन्होंने फिर भी हम उन्हें ही चाहते थे,
कितना भी भुलाना चाहे दिल फिर भी, हम उन्हें किताबों में पढ़ते थे,
मन-ही-मन उन्हें ताज़महल के रूप में सँवारते और गढ़ते थे,
मेरे दहलीज़ को लाँघ के चली गई ,फिर भी वो पल मेरे लिए खास था.....
कैसे प्यार करते हम उन्हें ,उनका दिल तो किसी और के पास था।
उनकी नज़रों से घायल और बातों के कायल थे,
वो मेरी ग़ज़ल थी और हम उनके शायर थे,
उनका रूप था सलोना...
और उन दूरी में कही न कही आस था....
कैसे प्यार करते हम उन्हें ,उनका दिल तो किसी और के पास था।
मोहब्बत थी ज़नाब से हमे, इसीलिए तो हम उन्हें ख़ुदा मानते थे,
लाख धोखा दिया उन्होंने फिर भी हम उन्हें ही चाहते थे,
कितना भी भुलाना चाहे दिल फिर भी, हम उन्हें किताबों में पढ़ते थे,
मन-ही-मन उन्हें ताज़महल के रूप में सँवारते और गढ़ते थे,
मेरे दहलीज़ को लाँघ के चली गई ,फिर भी वो पल मेरे लिए खास था.....
कैसे प्यार करते हम उन्हें ,उनका दिल तो किसी और के पास था।
उनकी नज़रों से घायल और बातों के कायल थे,
वो मेरी ग़ज़ल थी और हम उनके शायर थे,
उनका रूप था सलोना...