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मेरी कलम
पता नहीं मेरी इस कलम ने कितनी ज़िल्लते पाई होंगी। तब उसके टूटे दिल से ये बातें निकलकर आई होगी कि,
इस जमाने की दास्तान कुछ इस कदर है। यह नादान परिंदा इस अंजान दुनिया से बेखबर है। यह सुहावनी मुस्कान अक्षर नौसिखियो को कठिनाइयों में उलझाती है। उनके जहाज़ो को अंधियारो के सराबोर
में ले जाती है। कुछ तो राह बना लेते हैं अपनी किस्मत के सहारे। कुछ रह जाते हैं उलझे हुए खोजते किस्मत के सितारे। कमबख्त पता नही ये नौसिखियो की गाथा कहा जाके रुकेगी। कितने और क़िरदार हैं बाकि जिनके आगे झुकेगी। मैं तो इस युग में एक नया मुसाफ़िर खोजता हूं। जिसके साथ सफर हो सुहाना यह मैं सोचता हूं। लेकिन परस्थितिया तो इस क़दर हैं। होगा क्या आगे उससे मेरी कलम बेखबर हैं। फिर उठेगा लेखक लिखने को इतिहास नया। सबको बताने की क्या हैं मेरे और कलम के दरमियाँ। मुझे अभी कितना कुछ लिखना हैं। अधूरा जो रह गया बाकी वो सब सीखना हैं।
© @NAVU07