मेरी कलम
पता नहीं मेरी इस कलम ने कितनी ज़िल्लते पाई होंगी। तब उसके टूटे दिल से ये बातें निकलकर आई होगी कि,
इस जमाने की दास्तान कुछ इस कदर है। यह नादान परिंदा इस अंजान दुनिया से बेखबर है। यह सुहावनी मुस्कान अक्षर नौसिखियो को कठिनाइयों में उलझाती है। उनके जहाज़ो को अंधियारो के सराबोर
में ले जाती है। कुछ तो राह बना लेते...
इस जमाने की दास्तान कुछ इस कदर है। यह नादान परिंदा इस अंजान दुनिया से बेखबर है। यह सुहावनी मुस्कान अक्षर नौसिखियो को कठिनाइयों में उलझाती है। उनके जहाज़ो को अंधियारो के सराबोर
में ले जाती है। कुछ तो राह बना लेते...