...

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ये जिंदगी है मेरी
ये जिदगी है मेरी ,कोई
गुलाब की पखुटी नही
जिसे तोडने पे दर्द न हो ।
काटो पे चलते - चलते
थक चुके हे अब
रोशनी की उम्मीद मै
पता नही कीतने घरे
अंधेरो में घेर रहे है खुदको ।

अब तो ये काटो पे
चलने वाले पैर
कोई गुलाब की पंखु टी नही
जमीन का रास्ता माग रहा है
ऐ खुदा जरा इस मुसाभीर पे तरस तो खा
और रोशनी की उम्मीद दिखादे ।

अब दिखी है उसको कोई
चमकने वाली चीज
रोशनी की उम्मीद लेकर
उसकी ओर बढ रहा है
ऐ खुदा जरा इस मुसाभीर को बता
की रोशनी की उम्मीद मे
ये खुदको अंधेरो के घेरो मे घेर चुका है ।

ये जिंदगी है जनाब मेरी
कोई गुलाब की पखु टी नही
जिसे तोड़ने पे दर्द न होगा ।