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एक ट्रेन यात्रा...😁😁✍️✍️ (हास्य व्यंग)
एक रोज मैं खड़ा था ट्रेन के अड्डे
बैग लेकर के मैं दो बड्डे बड्डे

बहुत की मशक्कत बेकार थी किस्मत
नहीं मिला स्लीपर,बोल पड़ा स्पीकर

यात्री गण कृपया ध्यान दें
कासगंज को जाने बाली गाडी
प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़ी है
पर बोलने वाले को क्या पता हमारे दिल की धड़कन कितनी बढी है

ट्रेन आई तो बिल्कुल खाली थी
मेरे मुख पर बड़ी खुश हाली थी
फिर भीड़ का बड़ा सा रेला आया
जैसे मिठाई के संग करेला आया
जो सो रहे थे वो भी जागे
ट्रेन की तरफ ट्रेन से तेज भागे

कोई लग रहे थे शास्त्री से
हमने कहा उसी यात्री से
अरे हमें भी तो चढ़ने दीजिए
उसने कहा लोगों को तो बढ़ने दीजिए

खुद संभलूं या बैगों को संभालूं
हाथ मैं बाहर यार कैसे निकालूं
एक बन्दा बड़ा दयालू था
हमसे पहले चढ़ गया बहुत चालू था

उसने गुस्से में हाथ भींच लिया
मगर थोड़ी देर बाद हमें खींच लिया
बहुत मुश्किल से छूटे हम उस युद्ध से
लोग लग रहे थे हमसे कुछ क्रुद्ध से

अंदर का भयानक नजारा था
पर कौन वहां पर हमारा था
बोल करके हम जय भवानी जय दुर्गा
बन करके बैठ गये गैलरी...