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जीने का सलीका आ गया
गुमराह जो हुए तेरी महफ़िल में तो क्या हुवा
जीने का सलीका आ गया।
तुम्हारे नकाब की धज्जियां उड़ती देखी तो
बेदर्दीपन पे भी 'तरस' आ गया।
बहुत गुमान था ना अपने अहंकार के चश्मे पे
शुक्र है अब वो हकीकत को पा गया।
कहां से लाते हो तुम ये दर्द के पीछे 'मुस्कान' ज़िन्दादिली की झलक सा दिखला गया ।
गुमराह जो हुए तेरी महफिल में तो क्या हुवा
जीने का सलीका आ गया।
© highratedmaan
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