...

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तेरे ऑंचल में
थका निराश मन
खोजता है सुकून
प्रकृति, बस तेरे ऑंचल में।

विस्तृत सुरभित आनन
इक ओर सुदीर्घ नव कानन
चिड़ियों का कलरव मधुर
इक धार नदी की पावन।

थक जाता हूॅं तब आता हूॅं
कोई साथ नहीं जब पाता हूॅं
तब तेरी ओर तकता हूॅं मैं
इक पल भी नहीं रूकता हूॅं मैं।

उम्मीदें फिर जिंदा हो जाती हैं
निराशा दूर हो जाती है
सीने में दम भर जाता है
मुश्किल आसान हो जाती है।

हवा में बहता है संगीत
जब तेरी खनकती पायल से
जी करता है तेरे साथ रहूॅं
तेरी गोदी में,तेरे ऑंचल में।


© guddu srivastava