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बुरांश जैसे तुम
तुमने कई बार आग्रह किया
खुद को लिखने का
पर मैं असफल रही हर बार
वैसे ही जैसे
मैं नहीं लिख पाती
बुरांश के लाल रंगों को
मैंने जब जब देखा तुम्हे
तुम मुझे उसी के जैसे लगे
और मैं मोह में फस गई
मेरे शब्द सारे जैसे
कहीं गिर गए हों
इनके नरम पत्तो की तरह
मैं कुछ सोच ही नहीं पाई
तुम्हे और
बुरांश के फूलों को
देख कर
pic credit google
© life🧬
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