...

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अमल-ए- जिंदगी
दिन ढल जाती है रात बीत जाती है,
इंतजार की घड़ियाँ लम्बी होती चली जाती है।
मोसल्ले पर बैठे बैठे आँखों से आँसुओ का चस्मा हुआ जारी,
लब मेरे परवरदिगार को पुकार रहे है,
परवरदिगार से फ़रियाद कर अपने दिल को हल्का कर रहे है।
चंद कदमो में मौत लिखी है हमारी,
फिर भी ना जाने लोग क्यु लोगो से फ़रेब कर रहे है।

अमल क्या किया,कितना किया अपनी जिंदगी में,
इस बात की फिकर यहाँ किसे है करनी,
देख लेंगे जो होगा जिंदगी मिली है जीने दो कहते है लोग।
ये जिंदगी मिली नही युही अये लोगो,
रब ने अपनी इबादत के लिए हमें जिंदगी दी है,
नाशूकरे है हम रब के मगर हम सब ही है आदम की औलादे।

मिट्टी से बना है ये जिस्म हमारा कल हमे मिट्टी में ही मिल जाना है,
तो फ़िर क्यु हराम चीजों में अपना दिल लगाना है,
हराम का निवाला खाकर कितने दिन इस दुनिया में अपनी जिंदगी बिताओगे।
जहाँ से आये हो तुम, कल फ़िर तुम वही लौट जाओगे।

थोड़ा अपना रुख दुनिया से हटाओ,
क्या कहता है दीन उस पर भी जरा गौर फरमाओ।

Written by आफरीन
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© sincere girl