घर और मैं
कलम उठाई कुछ लिखना चाहा,
उन बातों पे जिनमें शायद ही मैंने कभी दिखना चाहा।
अकेले भी पड़े पर सबका साया भी था,
गवांया तो बहुत कुछ पर पाया भी था।
उस प्यार को जिसके जैसा दुनिया में,
क्या आज तक कुछ बन पाया भी था।
कुछ ख्बाहिशों को दबाएं जिएं है अब तक,
पर इन्हीं वजहों से तो घर वालों के...
उन बातों पे जिनमें शायद ही मैंने कभी दिखना चाहा।
अकेले भी पड़े पर सबका साया भी था,
गवांया तो बहुत कुछ पर पाया भी था।
उस प्यार को जिसके जैसा दुनिया में,
क्या आज तक कुछ बन पाया भी था।
कुछ ख्बाहिशों को दबाएं जिएं है अब तक,
पर इन्हीं वजहों से तो घर वालों के...