...

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आइए हूजूर आइए
आइए हूजूर आइए, कुछ तो करम फरमाइये
वो चांद खिल उठा है दिल के आसमां पे
कुमुदिनी से आप भी बन मुस्कुराइये
आइए हूजूर आइए

काली रातों को दिल दहलता है
कहता रहता बार बार वो चांद क्यूं नहीं निकलता है
हर्ष की सुगंध कब फैलेंगी इस ताल में
कुमुदिनी कब...