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प्रकृति
प्रकृति की गोद....
माँ की गोद जिसमें बच्चा जन्म लेते ही रहने लगता है उसे वही संसार लगता है एक आरामदायक दुनिया जहाँ सब कुछ लुटा देती है माँ उसको पालने मैं.... अच्छा इंसान बनाने मैं..... और जिंदगी भर हम उसका कर्ज निभाते हैं.. माँ पे जरा सी आँच आने पर हम जान दे देते है.... तो क्या प्रकृति जिसकी गोद मैं जन्म लिए है.... बड़े होने पर उससे खिलवाड़ करे.... प्रकृति मैं हर चीज का संतुलन है पर हम अपने स्वार्थ के लिए असंतुलित करते जा रहे हैं जिसके दुष्प्रभाव सभी देख रहे है या देखेंगे.............
एक भंवरा एक जंगल मैं रोज आता था हम उस प्रकृति की साये मैं.. उसकी पंखों की आवाज सुनते थे.. आँख बंद करके.. उसके आने से लेकर फ़ूलों पत्तियों से घूमते हुए लौटकर जाना सब सुनायी देता था... कल कल करता बहुत दूर से सुनायी देता था वो गिरता हुआ पानी....
चिड़ियों का झुंड उड़ता हुआ निकलता था तो वो भी सुनायी देता था...
कितने सुकून देते थे ये पल..
और अब वहाँ जाते हैं तो सिर्फ इमारतें दिखाई देती हैं..... गाडियों की आवाजें सुनायी देती है....
भंवरे तो पेड़ों फ़ूलों की आस मैं घूमते नज़र आते है... वो सन्नाटा वो सुकून तो मिल ही नहीं पाता... इसके दुष्परिणाम कहीं ना कहीं जाने अनजाने हो रहे हैं......
प्रकृति हमारी जननी है इसकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है...
मत कर छेड़छाड़ है इंसान
सब कुछ दिया है मैंने
कुछ नहीं माँगा
बस सिर्फ परवरिश
वो भी नहीं करेगा तो
हो जाएगा वैनिश
.....
© Abhishek mishra
माँ की गोद जिसमें बच्चा जन्म लेते ही रहने लगता है उसे वही संसार लगता है एक आरामदायक दुनिया जहाँ सब कुछ लुटा देती है माँ उसको पालने मैं.... अच्छा इंसान बनाने मैं..... और जिंदगी भर हम उसका कर्ज निभाते हैं.. माँ पे जरा सी आँच आने पर हम जान दे देते है.... तो क्या प्रकृति जिसकी गोद मैं जन्म लिए है.... बड़े होने पर उससे खिलवाड़ करे.... प्रकृति मैं हर चीज का संतुलन है पर हम अपने स्वार्थ के लिए असंतुलित करते जा रहे हैं जिसके दुष्प्रभाव सभी देख रहे है या देखेंगे.............
एक भंवरा एक जंगल मैं रोज आता था हम उस प्रकृति की साये मैं.. उसकी पंखों की आवाज सुनते थे.. आँख बंद करके.. उसके आने से लेकर फ़ूलों पत्तियों से घूमते हुए लौटकर जाना सब सुनायी देता था... कल कल करता बहुत दूर से सुनायी देता था वो गिरता हुआ पानी....
चिड़ियों का झुंड उड़ता हुआ निकलता था तो वो भी सुनायी देता था...
कितने सुकून देते थे ये पल..
और अब वहाँ जाते हैं तो सिर्फ इमारतें दिखाई देती हैं..... गाडियों की आवाजें सुनायी देती है....
भंवरे तो पेड़ों फ़ूलों की आस मैं घूमते नज़र आते है... वो सन्नाटा वो सुकून तो मिल ही नहीं पाता... इसके दुष्परिणाम कहीं ना कहीं जाने अनजाने हो रहे हैं......
प्रकृति हमारी जननी है इसकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है...
मत कर छेड़छाड़ है इंसान
सब कुछ दिया है मैंने
कुछ नहीं माँगा
बस सिर्फ परवरिश
वो भी नहीं करेगा तो
हो जाएगा वैनिश
.....
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