...

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साजिश
उमङते सैलावों के आँचल में
किश्ती का पार होना
यूँ तटो को छुना,
फिर यूँ लहरों के आगोश में समा जाना-आना
मर्म समझ में नहीं आता ,बिना धोखा खाए ।

एक बार....... एक बार कहती है लहरे
उस बे-जान पङी किश्ती से ।
आ.. आकर टकरा इन लहरों से अपने किनारे,
झँकार हो उठे शुन्य गगन में ।

भरी उम्मीदों से आया भी वो किश्ती
जीवंत-अनंत समुंदर में

पर उम्मीदे तो तब खो गई
जब मर्म हुआ...
यहाँ तो, बुँदों की एक
साजिश है

© ya waris