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रुदन स्वर
यह रचना आज से 12 साल पहले एक 10 वर्ष के बालक ने लिखीं थी।
उसने तभी लिख दिया था कि इस खेल में जब तक हमारी बाज़ी (चाल) है तभी संभल जाओ वरना जब प्रकृति चाल चलेगी तब और कुछ नहीं सिर्फ तबाही होगी और चारों तरफ सिर्फ त्राहि माम् ,त्राहि माम् की गूंज होगी और अगली चाल चलने के लिए हम नहीं होंगे क्योंकि खेल खत्म हो जाएगा।।

रुदन स्वर

चलते चलते पथ पर थम गया मै
सुन एक रुदन स्वर पीछे मुड़ गया मै
पीछे किसी को ना पाकर दो पल डर गया मै
परंतु जैसे हुआ चलने को
फिर सुन एक रुदन स्वर पीछे मुड गया मै

पूर्णिमा की चांदनी रात में
देख वृक्ष को बिलखते, प्राण सूख गए हलक...