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रुदन स्वर
यह रचना आज से 12 साल पहले एक 10 वर्ष के बालक ने लिखीं थी।
उसने तभी लिख दिया था कि इस खेल में जब तक हमारी बाज़ी (चाल) है तभी संभल जाओ वरना जब प्रकृति चाल चलेगी तब और कुछ नहीं सिर्फ तबाही होगी और चारों तरफ सिर्फ त्राहि माम् ,त्राहि माम् की गूंज होगी और अगली चाल चलने के लिए हम नहीं होंगे क्योंकि खेल खत्म हो जाएगा।।

रुदन स्वर

चलते चलते पथ पर थम गया मै
सुन एक रुदन स्वर पीछे मुड़ गया मै
पीछे किसी को ना पाकर दो पल डर गया मै
परंतु जैसे हुआ चलने को
फिर सुन एक रुदन स्वर पीछे मुड गया मै

पूर्णिमा की चांदनी रात में
देख वृक्ष को बिलखते, प्राण सूख गए हलक में
बांध हिम्मत पूछा, क्या कारण इस रुदन का?
अचंभित हो गया, सुन उसको
कोई और नहीं तुम इंसा

हमने तुम को क्या क्या नहीं दिया
फिर क्यों तुमने ऐसा किया
यह कह उसने (वृक्ष) मुझे झकझोर दिया

हमने तुम्हे छाया दी, तुमने हमें क्या दिया
कर अनाथ हमें, तुम को क्या मिल गया

हमने तुम्हे फल फूल दिए, तुमने ये कैसा सलूक किया
कर छलनी सीना हमारा, तुम को क्या मिल गया

हमने तुम्हे प्राणवायु दी, बदले में तुमने क्या दिया
प्रगति के नाम पर, बंधु का ही गला घोट दिया


पर सुन , ऐ मानव तू जिस प्रगति पर इतना इतराता है
अंधाधुंध हमें कटवाता है
वहीं एक दिन तुझे लील जाएगी
धरती बच न पाएगी, तबाह हो जाएगी
तेरा भी अंत हो जाएगा, तुझे भी कोई नहीं बचा पाएगा

करता हूं आगाह , संभल जा
कर संरक्षण हमारा
तभी बचेगी ये धरा और सुखमय होगा तेरा जीवन प्यारा

स्तब्ध था, मुँह खोल खड़ा था
पर सीख गया था, एक सबक न्यारा।।


©सञ्ज्ञारहित

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