...

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समय अजब है हम अपनो में भी अपनापन ढूढ़ रहें है।
समय अजब है हम अपनो में भी अपनापन ढूढ़ रहें है।

सुख गया मधुरस रिश्तों का लगे अपरचित भाई भाई।
संबंधों के पुल के नीचे खींची हुई है गहरी खाई।।
नागफनी के विरवे बोकर हम चंदन बन ढूंढ रहें है।।
समय अजब है....

तन उबटन से लीपे पुते हैं मन के ऊपर पड़ी खरोंचे।
अपने ही नाखून आजकल खुद...