नहीं समझ सके दिल के गहरे भाव
दिल अपने को मैने चूर चूर किया,
हर किसी ने मेरा ही कसूर किया,
नहीं समझ सके दिल के गहरे भाव,
हर किसी ने मुझे ही मजबूर किया।।
समझ ना सके वो मेरे प्यार को
दिल में बसे अपने संसार को
उनके कदमों में अपनी जां बिछा दूं
जान ना सके आखों में बसे सत्कार को
दिल ने चाहत में फिर भी सबूर किया।।
सदियों से सहने की मेरी आदत हो गई
मेरी मोहोब्बत अब मेरी इबादत हो गई
मनोज सबर का ख्याल बसता गया दिल में
पुष्प के चाह अब मेरी सराफत हो गई
मनोज को पुष्प की चाह ने महसूर किया।।
© Manoj Vinod-SuthaR
हर किसी ने मेरा ही कसूर किया,
नहीं समझ सके दिल के गहरे भाव,
हर किसी ने मुझे ही मजबूर किया।।
समझ ना सके वो मेरे प्यार को
दिल में बसे अपने संसार को
उनके कदमों में अपनी जां बिछा दूं
जान ना सके आखों में बसे सत्कार को
दिल ने चाहत में फिर भी सबूर किया।।
सदियों से सहने की मेरी आदत हो गई
मेरी मोहोब्बत अब मेरी इबादत हो गई
मनोज सबर का ख्याल बसता गया दिल में
पुष्प के चाह अब मेरी सराफत हो गई
मनोज को पुष्प की चाह ने महसूर किया।।
© Manoj Vinod-SuthaR