...

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*** वो बातें ***
*** ग़ज़ल ***
*** वो बातें ***

" वो बातें अब कहां हो रही ‌,
वो मुलाक़ाते अब‌ कहा हो‌ रही ,
जो‌‌ कटती नहीं थी रही रातें‌ ,
तेरे उन‌ गुपचुप बातों की तरह‌ ,
तसव्वुर कर के बैठा हूं मैं ,
अब इत्मीनान की इन्तहा हो रही हैं ‌,
मुन्तजिर हु अब इन ख़्यालो का ,
कि कोई शख्स मिली थी हमें‌ ,
वो बातें अब कहां हो रही ‌,
वो मुलाक़ाते अब‌ कहा हो‌ रही ,
गुमसुम गुमनाम हो गई अब वो ,
उसके मुन्तजिर की इन्तहा हो गई ,
घड़ीया कट तो‌ रही ये सिलसिला मुसलसल हो गई ,
याद‌ तो आई पर कोई बात कही बात ,
फिर कहीं किसी जज़्बात पे रुक गई . "

--- रबिन्द्र राम


© Rabindra Ram