...

8 views

जख्म
मरहम तो लगी हैं उपर
जख्म पर अंदर से गहरा हैं,
शामिल तो होता हूं खुशियों में
मगर दिल तो दर्द का सहरा हैं,
तन्हा कभी मैं रहता नहीं चारों
तरफ़ तेरी यादों का पहरा हैं,
बीत कर भी बीतता नहीं वक्त
मन मेरा उसी पल में ठहरा हैं,
दूसरे के दर्द से घबराता नहीं
अंदर भी मेरा कितना बहरा हैं,
किताबें तो बहुत हैं पर पढ़ने
को सामने ना कोई चेहरा हैं,
कुछ उम्मीद तो अब भी बाकी
चाहे वक्त ना मेरा सुनहरा हैं,
मरहम तो लगी हैं उपर
जख्म पर अंदर से गहरा हैं।

'ताज'
© taj