...

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आजकल
वो तेरी बस्तगी के चरागों का धुंआ सा हैं फिजाओं में आजकल।।
वो कूचे की गलियां ओर उस गली के दरीचे वीरान हैं, आजकल।।
ये मौसम फिर बदल जायेगा कल,खैर कहकशे दूर हैं तो क्या हुआ आज कल। ।
वो तमाशबीन एक उत्त हैं," शायर "
करवट जरूर लेगा,
ख़ैर रकीब है तो क्या हुआ आजकल।।

स्वरचित ©copyright reserved



© डॉ एस एल परमार "शायर"