...

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मेरा मन - वृंदावन❣️

वो गालियां तंग थी मगर आज़ाद मेरा हर दर्द हो गया
उन हवाओं में ऐसा सुरुर था कि ज़ख़्म मेरा ख़त्म हर बार में हो गया
उस नदी के पानी मे जादू था कोई
छू कर जैसे मन में सारी हलचलों को शान्त कर दिया
उस गली की मिट्टी में अमृत था कोई
जिसकी खुशबु में महके ऐसे कि
रोम रोम पावन पवित्र हो गया
जितना लिखूं कम लगे
और मैं उस नायाब को क्या कहूँ
जिसने लिख दिया सब कुछ मुझे
उसे और क्या मैं लिख सकूँ
एक सफ़र से बह रही थी ज़िंदगी एक धार में
इस बहाव में जैसे गम बह गया सारा एक साथ में
अपने दर्द को मैने आख़िरी बार देखा
जब वृंदावन की ज़मीन पे मैंने खुशियों को सरेआम देखा....

,🌿🌷राधे राधे🌷🌿


© ƧӇƖƊƊƛƬ