...

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नींद
नींद को मेरी नींद आने को है
कोई ख़्वाब ज़िंदगी सजाने को है

मुस्कुराहटों का मेला है वैसे ज़िंदगी मेरी
ये मुस्कुराहटें मगर बस दिखाने को है

मैं ख़ामोश हूँ मुझे फर्क पढ़ता नहीं किसी के जाने से
मगर आँखें मेरी पीछे से आवाज़ लगाने को है

मुझे डर है मैं शायद बीमार हो गई
मेरे दर्द में कमी क्यूँ आने को है

नींद को मेरी नींद अब आने को है
फिर रात यूँही गुज़र जाने को है..!
© Vinisha Dang