पतंग यूँ उड़ी
🌷 पतंग यूँ उड़ी 🌷
स्वच्छंद आकाश में जो, अनेकों पतंगों को उड़ते देखा,
मेरा मन भी भावनाओं में आकर, कुछ बहकने लगा।
सोंचा क्यों ना पल दो पल, लुत्फ उठा लूँ जीवन का,
मेरे दिल की पतंग यूँ उड़ी, कल्पनाओं में मैं बहने लगा।
रंग बिरंगी दुनिया को देख, मेरा मन भी तरस गया,
पेंच लड़ी किसी नाज़नीन से, प्रेम सुधा सा बरस गया।
विश्वास का मांझा कमजोर निकला, डोर मेरा कट गया,
भ्रम का जाल जो आँखों पर था, अनायास ही छट गया।
बह चला मैं ऊँचे आसमान में, ना ठौर ना ठिकाना था,
कोई मुझे लूट लेता या, मुझे पुनः जमीन पर आना था।
जाने कैसे भावनाओं में बहकर, कर्म पथ से भटक गया,
ना लूटा गया ना जमीं पर आया, मैं पेड़ों पर लटक गया।
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