कलम
मेरी कलम बोलती हैं।
मेरे दिल के राज़ खोलती हैं।
जो सबसे ना कह पाई मैं
वोह चुप होकर भी सबसे बोलती हैं।।
मेरे जज्बातों की स्याही बनकर
वोह कागज़ पर डोलती हैं।।
मैं अब भी चुप हूं मगर
मेरी कलम बोलती हैं।।
ग़म भरे चेहरे पर
मुस्कान लाकर छोड़ती हैं।
मेरी ज़िंदगी की सारी बातें
मैं नहीं वोह बोलती हैं।
मैं अब भी चुप हूं मगर
मेरी कलम बोलती हैं।।
मेरे दिल के राज़ खोलती हैं।
जो सबसे ना कह पाई मैं
वोह चुप होकर भी सबसे बोलती हैं।।
मेरे जज्बातों की स्याही बनकर
वोह कागज़ पर डोलती हैं।।
मैं अब भी चुप हूं मगर
मेरी कलम बोलती हैं।।
ग़म भरे चेहरे पर
मुस्कान लाकर छोड़ती हैं।
मेरी ज़िंदगी की सारी बातें
मैं नहीं वोह बोलती हैं।
मैं अब भी चुप हूं मगर
मेरी कलम बोलती हैं।।