...

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देखो जीकर निस्वार्थ जीवन..
कभी देखो जीकर निस्वार्थ जीवन..
मैंने निस्वार्थ लोगों को भगवान बनते देखा है,
जिन्होंने मोह रखा,ना छोड़ी लालसा,
उन्हें बर्बाद होते देखा है...

मज़बूत चट्टानों को भी टूटते देखा है,
मोटी दिवारों में सेंध लगते देखा है,
देखा है मज़बूत छतों को चिटकते,
मज़बूत कपड़ों को भी फटते देखा है।

क्यों करना गुरूर इतना कि गुमान आ जाए,
अपने लोगों को भी बदलते देखा है,
भूल क्यों जाना ख़ुद को दूसरों के खातिर..
पुराने मज़बूत रिश्तों को भी दूर होते देखा है।

ज्यादा अच्छा होगा कि खुद को पढ़ो कभी,
स्वचिंतन से फर्श से अर्श होते देखा है,
तुम भी कभी आजमाओ ख़ुद को...
बहुतों को खुद से खुदा बनते देखा है..!!

आकांक्षा मगन "सरस्वती"


© आकांक्षा मगन "सरस्वती"