...

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मेरी अर्जी
मुन्तजिर है दीद हमारी,
उनकी एक झलक पा जाने को,
पलक बिछाए हम बैठे हैं,
उनके स्वागत करने को।

जब चले पुरवा पवन,
उद्वेलित कर देती यह तन मन,
एक दिन,वो आ जाएंगी पास,
लेकर बस यही एक आस,
चल रही है मेरी सांस।
अब तो,
मिल जाएं जब वो,
तभी तन में,
नयी ऊर्जा का संचार हो।

प्रभु से कर रहे हम यह अरदास,
रखो,तुम हमारा ध्यान खास।
हम हैं भोले,और नादान,
निश्चल मन,
और हैं राही अनजान।
माफ कर,सब गलतियां,
स्वीकार कर लो यह अरदास,
तुम कहलाते दया के सागर,
अपनी कृपा से,
भर दो मेरी भी गागर,
सुन लो मेरी यह अर्जी,
नदी किनारे,बैठा एक दुखिया,
दिलबर से उसे मिलाकर तुम,
कबूल कर लो उसकी अरजी।
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© mere alfaaz