...

41 views

आख़िर क्यों ढूंढते हैं क़दम तुम्हें..??
रात दिन यों तन्हा ही बीत जाते हैं,
ना जानें ये बंदिशों का दौर कब खत्म हो..

खिड़कियां दरवाज़े भी अब मेरी उदासी
से पनाह मांगते है,
कि ना जानें ये बंदिशों का दौर कब खत्म हो...

उदासियों का आलम यों है कि
ताज़े फूलों के गुलदस्ते भी मुझे मुरझाए नज़र आतें हैं...,

कि अब ना मन कदम बिस्तर से नीचे रखने को हो रहा,
ना जानें क्यों हर कदम, हर तरफ, हर कोनों में, सिर्फ़ तुमको ही ढूढते हैं...??
© दी कु पा