आख़िर क्यों ढूंढते हैं क़दम तुम्हें..??
रात दिन यों तन्हा ही बीत जाते हैं,
ना जानें ये बंदिशों का दौर कब खत्म हो..
खिड़कियां दरवाज़े भी अब मेरी उदासी
से पनाह मांगते है,
कि ना जानें ये बंदिशों...
ना जानें ये बंदिशों का दौर कब खत्म हो..
खिड़कियां दरवाज़े भी अब मेरी उदासी
से पनाह मांगते है,
कि ना जानें ये बंदिशों...