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जज़्बा और जुनून
ये कविता मैने 2022 में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर लिखी थी।
ये लहू में होता है जज़्बा ओ जुनून जीतने का
ये धमनियों में बहता है साहस का सागर
ये ना हो सका है ना हो पाएगा कभी
के कांटे आपके राह के हटायेगा कोई
बहुत आते हैं मदद के हाथ सफ़र मे
बहुत लोगों के मिलते हैं साथ सफ़र में
मगर जो मील का पत्थर है वो वहीं रहेगा
अंजाम ए सफ़र तक सहारा कोई नहीं रहेगा
ये हल्की हल्की सी ख्वाहिशें
ये दबा-दबा हुनर कैसा
ये सहमी-सहमी सी मेहनतें
ये हारा हुआ जिगर कैसा
बढ़ चलो ज़िन्दाबाद होके अपने मैदान-ए-जंग में
ऐसा जज़्बा देख कर ही आएंगे खुदा संग में
ये बड़ी-बड़ी इमारतें
क्या इनसे तुम डरते हो
ये भारी भरकम नसीहतें
क्या इनसे डगमगाते हो
मत बहक जाना देखकर
इनकी शान ओ शौकत को
मत महक जाना सुनकर
इनकी तुम शोहरत को
आत्मनिर्भरता के गुण को खुद में आत्मसात करो
अपनी कमज़ोरियों को जानो खुद से बात करो
मशवरों की सलाहों की बौछारें आती रही हैं आयेंगी
तुम्हारी जीत की कहानी पर लोगों की ज़ुबाने सुनायेंगी
चाहते हो देर तक टिकना यहाँ तो आंखें खुली रखो
दर्जनों फूल न सही बस होश की एक कली रखो
फिर रफ़्ता -रफ़्ता मयार ए ज़िंदगी संवरती जायेगी
आहिस्ता आहिस्ता कैफियत तुम्हारी निखरती जाएगी
जगा लो खुद में जोश की शम्मा ओ मशालों को
हल कर सको तो कर दिखाओ सारे सवालों को
फिर देखना कैसा तुम्हारा अलग एक मकाम होगा
काबिल ए तारीफ बनोगे तब एहतराम होगा !!!!!
© ✍🏻sidd
ये लहू में होता है जज़्बा ओ जुनून जीतने का
ये धमनियों में बहता है साहस का सागर
ये ना हो सका है ना हो पाएगा कभी
के कांटे आपके राह के हटायेगा कोई
बहुत आते हैं मदद के हाथ सफ़र मे
बहुत लोगों के मिलते हैं साथ सफ़र में
मगर जो मील का पत्थर है वो वहीं रहेगा
अंजाम ए सफ़र तक सहारा कोई नहीं रहेगा
ये हल्की हल्की सी ख्वाहिशें
ये दबा-दबा हुनर कैसा
ये सहमी-सहमी सी मेहनतें
ये हारा हुआ जिगर कैसा
बढ़ चलो ज़िन्दाबाद होके अपने मैदान-ए-जंग में
ऐसा जज़्बा देख कर ही आएंगे खुदा संग में
ये बड़ी-बड़ी इमारतें
क्या इनसे तुम डरते हो
ये भारी भरकम नसीहतें
क्या इनसे डगमगाते हो
मत बहक जाना देखकर
इनकी शान ओ शौकत को
मत महक जाना सुनकर
इनकी तुम शोहरत को
आत्मनिर्भरता के गुण को खुद में आत्मसात करो
अपनी कमज़ोरियों को जानो खुद से बात करो
मशवरों की सलाहों की बौछारें आती रही हैं आयेंगी
तुम्हारी जीत की कहानी पर लोगों की ज़ुबाने सुनायेंगी
चाहते हो देर तक टिकना यहाँ तो आंखें खुली रखो
दर्जनों फूल न सही बस होश की एक कली रखो
फिर रफ़्ता -रफ़्ता मयार ए ज़िंदगी संवरती जायेगी
आहिस्ता आहिस्ता कैफियत तुम्हारी निखरती जाएगी
जगा लो खुद में जोश की शम्मा ओ मशालों को
हल कर सको तो कर दिखाओ सारे सवालों को
फिर देखना कैसा तुम्हारा अलग एक मकाम होगा
काबिल ए तारीफ बनोगे तब एहतराम होगा !!!!!
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