15 views
अत्याचार.. अत्याचारी?? प्रकृति....
प्रकृति का अत्याचार है हम पर
या हम प्रकृति के अत्याचारी
सोचें समझें तो ज़रा
क्यों फ़ैल रही चहुँ ओर बीमारी
प्रकृति संग किए छेड़ छाड़
नहीं रहे कृतज्ञ, आभारी
प्रकृति हुई है लाचार
हम हुए हैं उसके विध्वंसकारी
प्रहार कर रही प्रहरी प्रकृति
पापी जो बैठे इसके दरबारी
विनाश लीला दिखाएगी ही
हरियाली इसकी जो हमने उखाड़ी
मौन प्रकृति का कोई समझे
जनमानस की ये पीड़ाहारी
क्रोध से उबर पाना आसान नहीं
झुंझलाहट इसकी पड़ती जाएगी भारी..!!
© bindu
या हम प्रकृति के अत्याचारी
सोचें समझें तो ज़रा
क्यों फ़ैल रही चहुँ ओर बीमारी
प्रकृति संग किए छेड़ छाड़
नहीं रहे कृतज्ञ, आभारी
प्रकृति हुई है लाचार
हम हुए हैं उसके विध्वंसकारी
प्रहार कर रही प्रहरी प्रकृति
पापी जो बैठे इसके दरबारी
विनाश लीला दिखाएगी ही
हरियाली इसकी जो हमने उखाड़ी
मौन प्रकृति का कोई समझे
जनमानस की ये पीड़ाहारी
क्रोध से उबर पाना आसान नहीं
झुंझलाहट इसकी पड़ती जाएगी भारी..!!
© bindu
Related Stories
25 Likes
9
Comments
25 Likes
9
Comments