...

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हमें वफा कहां से मिलती ।
हम जो खुद बेवफा थे ,
हमें वफा कहां से मिलती ।

हमने ही चुनवा डाले रोशनदाने ,
फिर ताज़ी हवा कहा से मिलती ।

जिस्म को जरूरतों में चादर फैलता रहा ,
इसमें इश्क की इनायते कहा से मिलती ।


© mukesh_syahi