बुज़ुर्ग की लाठी
बसती है जिनमे माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान....
संतान है एक पौधा और माता पिता है उसके माली,
जिस प्रकार बिना देख रेख के सूख जाती है पेड़ की डाली,
उसी प्रकार संतान रूपी पौधा बढ़ नही सकता अगर माता पिता रूपी ना हो माली,
बस्ती है जिनमे माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान...
बचपन में बच्चे के बिना बोले माँ सब समझ जाती है,
बच्चे के ज़िद करने पर भी उसपे अपनी प्यार और ममता लुटाती है,
अपने खर्चो से लेकर अपनी ज़िंदगी बच्चो पर माता पिता कर देते है कुर्बान,
बस्ती है जिनमे हर माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान....
माता पिता अपने कर्ज़ को भी हंस के झेलते है,
अपने बच्चे के लिए फ़र्ज़ कह कर हर तूफानों से खेलते है,
अपनी जमापूंजी भी लगा देते है अपनी संतान के भविष्य को संवारने में,
माता पिता सोचते है संतान का हाथ ही है हमारे जीवन को तारने में,
बस्ती है जिनमे हर माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान...
माता पिता अपने अस्तित्व को मिटा कर अपने संतान का अस्तित्व स्थापित करते है,
अपने संतान की जान बचाने के लिए मौत से भी नही...
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान....
संतान है एक पौधा और माता पिता है उसके माली,
जिस प्रकार बिना देख रेख के सूख जाती है पेड़ की डाली,
उसी प्रकार संतान रूपी पौधा बढ़ नही सकता अगर माता पिता रूपी ना हो माली,
बस्ती है जिनमे माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान...
बचपन में बच्चे के बिना बोले माँ सब समझ जाती है,
बच्चे के ज़िद करने पर भी उसपे अपनी प्यार और ममता लुटाती है,
अपने खर्चो से लेकर अपनी ज़िंदगी बच्चो पर माता पिता कर देते है कुर्बान,
बस्ती है जिनमे हर माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान....
माता पिता अपने कर्ज़ को भी हंस के झेलते है,
अपने बच्चे के लिए फ़र्ज़ कह कर हर तूफानों से खेलते है,
अपनी जमापूंजी भी लगा देते है अपनी संतान के भविष्य को संवारने में,
माता पिता सोचते है संतान का हाथ ही है हमारे जीवन को तारने में,
बस्ती है जिनमे हर माता पिता की जान,
माता पिता के बुढ़ापे की लाठी है संतान...
माता पिता अपने अस्तित्व को मिटा कर अपने संतान का अस्तित्व स्थापित करते है,
अपने संतान की जान बचाने के लिए मौत से भी नही...