ग़ज़ल
घर में रहा हूँ मैं घर में नहीं हूँ लेकिन,
तुम्हारा हो गया हूं मैं तुम ही नहीं हो लेकिन.
याद है वो दिसम्बर जब मिले थे हम,
कि परिचित हुए थे पहले चिर-परिचित नहीं थे लेकिन.
तुम्हारे इश्क़ में जाना मैं सब कुछ भूल जाता हूँ,
तुम तो रहे तुम मैं मैं नहीं हूँ लेकिन.
पता था कि छोड़कर चले जाओगे तुम,
ये दिल फिर भी मगर करता रहा यकीन लेकिन.
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तुम्हारा हो गया हूं मैं तुम ही नहीं हो लेकिन.
याद है वो दिसम्बर जब मिले थे हम,
कि परिचित हुए थे पहले चिर-परिचित नहीं थे लेकिन.
तुम्हारे इश्क़ में जाना मैं सब कुछ भूल जाता हूँ,
तुम तो रहे तुम मैं मैं नहीं हूँ लेकिन.
पता था कि छोड़कर चले जाओगे तुम,
ये दिल फिर भी मगर करता रहा यकीन लेकिन.
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