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ज़िन्दगी का खेल
यह ज़िन्दगी मुझे कभी कभी,
चौसर का खेल लगती है।
जाने कब बाज़ी पलट देते हैं,
हँसी खुशी और ग़म के मोहरे।
सीधी टेढ़ी चालें चलकर,
वक़्त बदलता हालातों के चेहरे।
किस्मत पांसे फेंककर अलग अलग
परखती है ज़िन्दगी के हर मोड़ पर।
आखिर जीत उसी की होती है,
जो जागृत रखता है अपनी चेतना।
ना ऐश्र्वर्य में अपना आपा खोए,
ना पीड़ा में कभी वो अश्क बहाए।
प्रभु इच्छा समझ ,सुख-दुख को गले लगाए।
© ✍️nemat🤲
चौसर का खेल लगती है।
जाने कब बाज़ी पलट देते हैं,
हँसी खुशी और ग़म के मोहरे।
सीधी टेढ़ी चालें चलकर,
वक़्त बदलता हालातों के चेहरे।
किस्मत पांसे फेंककर अलग अलग
परखती है ज़िन्दगी के हर मोड़ पर।
आखिर जीत उसी की होती है,
जो जागृत रखता है अपनी चेतना।
ना ऐश्र्वर्य में अपना आपा खोए,
ना पीड़ा में कभी वो अश्क बहाए।
प्रभु इच्छा समझ ,सुख-दुख को गले लगाए।
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