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देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
काली चादर ओढ़े निशा पांव पसार रही है
आंधियों के झोंके से जग को डरा रही है
बिखर बिखर गए हैं, झोपड़ी, महल, घर
धूल से निकल कर एक चिड़िया गा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
तहस-नहस हो गए हैं, बने थे जो वर्षों से
एक झटके ने सहसा छीना, सब कुछ उससे
फिर भी कितनी आशा से, तिनका लिए जा रही है
वो चिड़िया गगन में शायद, घोंसला बनाने जा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
क्यों रुकूं, भले रास्ता भी ना दिख पाए
क्यों रोऊं, भले मुट्ठी में एक कण भी ना आए
मन की यह आवाज सुन, आंधियां भी घबड़ा रही हैं
वो चिड़िया तो बस, एक और कोशिश किए जा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
© Ashutosh Kumar Upadhyay
#yqwriter #yq #ashutoshupadhyay #ashutosh #ashutoshuupadhyaypoem #आशुतोष
काली चादर ओढ़े निशा पांव पसार रही है
आंधियों के झोंके से जग को डरा रही है
बिखर बिखर गए हैं, झोपड़ी, महल, घर
धूल से निकल कर एक चिड़िया गा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
तहस-नहस हो गए हैं, बने थे जो वर्षों से
एक झटके ने सहसा छीना, सब कुछ उससे
फिर भी कितनी आशा से, तिनका लिए जा रही है
वो चिड़िया गगन में शायद, घोंसला बनाने जा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
क्यों रुकूं, भले रास्ता भी ना दिख पाए
क्यों रोऊं, भले मुट्ठी में एक कण भी ना आए
मन की यह आवाज सुन, आंधियां भी घबड़ा रही हैं
वो चिड़िया तो बस, एक और कोशिश किए जा रही है
देखो चांदनी अब मुस्कुरा रही है!
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