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chowkidar
"चौकीदार"
जुलमों की दास्तानें, मीटा आये साहब
शैतान को भी सुना हैं,
मार आये आप,
पाक,साफ और शरीफ खुद ही
सुना है रहबर भी है आप,
हज भी,
हो आये हैं आप,
कतरां-कतरां जिस्म का
ईक कह रहा था दास्तां,
नापाक को भी पाक
कराए हैं आप,
रूँह कपकपाती आती हुई सी
नजरें भी वह नम हो गई,
कब्रों में मुर्दानगीं शायद
हां,फिर से सो गई
सिर्फ,
समझने के लिए
मैं समझ पाता की,
कोई बात की
उसकी कुर्बानी भी
लम्हो की बात हो गई,
कोई गुजरा नहीं
उस राह से,
फिर और कोई
वर्क में जमाने के
अंधेरी रात हो गई,
किसीं ने
भूख से तड़प कर
दम को तोड़ा था,
हर ईक कब्र से
ईक 'इंकलाब' बोला था,
यहां जिंदा नहीं
मुर्दों के जिसको पलते हैं,
रेंगते कब्रों में
जिंदा जिन्नात ढ़लते हैं,
ये हुकूमत ये हुकमरान
यह जनाजें
न जाने यहां
किस-किस के ख्वाब
पलते हैं,
वहां उस और जहां
वह शमशान जलता है,
लगता परिंदों के परों से
चमन सुलगता है,
रात में लोग इन्हें
जुगनू भी कह देते हैं,
कोई मयकश इन्हें
उजड़ी बाहर आता है,
भड़कें स्यारो कि
यहां पर ही दौड़ लगती है,
कुत्तों और कबर बिज्जूऔं की
आपस में
होड़ लगती है,
कितने नेता यहां और
कितने आते करिन्दे,
रोज एक गुनाहगार की
तस्वीर नयी जढ़ती है,
खाक इक खाक ने
कितनों को फना कर डाला,
फिर भी अपने आंचल से
हर जिस्म
यही ढ़कती है,
मैं यहां झुका हुआ
इसे सलाम करता हूं,
चौकीदारी है मेरी,
यही काम
किया करता हूं,

(पाक - पवित्र),(वर्क-पन्ना),( जिन्नात-भूत,प्रेत),(स्यारो-सियार)
(करिन्दे-कर्मचारी),(खाक-मिट्टी),
© divu

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