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कबाड़ी वाला--
बचपन की यादें क्या लिखूं,, जवानी की बाते क्या लिखूँ,, सब कुछ वैसे का वैसा ही,, बदले है सिर्फ शासक और सियासत दार,,, चाहे सत्ययुग रहा हो,, त्रेता रहा हो,, चाहे द्वापर रहा हो,, और चाहे कलयुग ही क्यो न हो,, सब कुछ वैसे का वैसा,, राजा-प्रजा,, ऊँच- नीच,, अमीर- गरीब,, कुछ तो नही बदला,, एक गरीब का बेटा ,, एक मजदूर का बेटा,, मजदूर ही बनता है,, और यदि 1एक प्रतिशत कुछ बनता भी है तो नौकर,,, नौकर तो नौकर होता है,, चाहे वो प्रथम श्रेणी का हो,, या चतुर्थ श्रेणी का,, हा,, मैं कबाड़ी वाला हूँ,, दिन भर कचरा से बोतल,, कांच तलाश कर मुश्किल से दो वक्त की रोटी अपने बच्चों को खिला पाता हूँ,, अपने अपने बच्चों को कौन सी शिक्षा दूंगा,, आप कह सकते है सरकारी इसकूल तो है,, हा,, जरूर है,, मैं अपने बच्चों को उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी स्कूल में भेजता हूँ,, मेरा एक बच्चा कक्षा 3 में तो दूसरा कक्षा 5 में अभी आ से अहा तक नही आता है,, उत्तर प्रदेश ही नही पूरे भारत मे अमीरों के लिए अलग शिक्षा और गरीबो के लिए अलग शिक्षा की ब्यवस्था है,, का करे साहब ,, हम तो सूद है,, मेरे बाप दादा गरीबी में एडी रगड़ रगड़ के मर गए,, हमहू मर रहे है,, हमार बिटौना भी ऐसे मर जाई,,,
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