कबाड़ी वाला--
बचपन की यादें क्या लिखूं,, जवानी की बाते क्या लिखूँ,, सब कुछ वैसे का वैसा ही,, बदले है सिर्फ शासक और सियासत दार,,, चाहे सत्ययुग रहा हो,, त्रेता रहा हो,, चाहे द्वापर रहा हो,, और चाहे कलयुग ही क्यो न हो,, सब कुछ वैसे का वैसा,, राजा-प्रजा,, ऊँच- नीच,, अमीर- गरीब,, कुछ तो नही बदला,, एक गरीब का बेटा ,, एक मजदूर का बेटा,, मजदूर ही बनता है,, और यदि 1एक प्रतिशत कुछ बनता भी है तो नौकर,,, नौकर तो नौकर होता है,, चाहे वो प्रथम...