जिद्दी बालक सी मेरी कविताएं...
और अक़्सर...
मैं अपनी कविताओं को समेट कर
रख देना चाहती हूँ
अपने हृदय की
सबसे ऊंची अरगनी पर...!
भावों को कह देती हूँ
कि... थम जाएं
पन्नों पर उतर कर...
रिक्त न करें संवेदनाओं से
मेरे मन को...
पर ये कविताएं भी न...
जिद्दी बालक सी हैं,
फिर फिर...
उतर आती हैं
मेरी उंगलियों की पोरों पर...!!
मैं अपनी कविताओं को समेट कर
रख देना चाहती हूँ
अपने हृदय की
सबसे ऊंची अरगनी पर...!
भावों को कह देती हूँ
कि... थम जाएं
पन्नों पर उतर कर...
रिक्त न करें संवेदनाओं से
मेरे मन को...
पर ये कविताएं भी न...
जिद्दी बालक सी हैं,
फिर फिर...
उतर आती हैं
मेरी उंगलियों की पोरों पर...!!
Related Stories