...

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मन का खेल
एक पल में त्यागी ,तो अगले ही क्षण विलासी।
एक पल में भागी , तो अगले ही क्षण विन्यासी।
एक पल में भोगी , तो अगले ही क्षण सन्यासी।
एक पल में दिव्यांगी, तो अगले ही क्षण अविनाषी ।
पवन के वेग के समान आब्ध्य है हमारा यह चंचल मन।

एक पल में कठोर, तो अगले ही पल...