...

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मैं ख़ुद आइना हूँ
तिनका - तिनका एक पल में ख़ुद को मैंने बिखरते देखा है,
हाँ....तिल - तिल करके बारहा ख़ुद को ही मैंने मरते देखा !!

मैं ख़ुद आईना हूँ अपनी इस तन्हा बिखरी हुई ज़िंदगी का,
एक - एक करके सारे अरमानों को मैंने जो जलते देखा है !!

क्या कहूँ क्या न कहूँ, क्या-क्या न देखें है मंज़र आज तक,
ख़ुशी के आसूँ कम, पर आँखों से समंदर को बहते देखा है !!

इतना दहला दिल की न पूछो यारों सहम सी गई हूँ कुछ यूँ,
अंधेरे में तो ख़ुद के ही अक्स से ख़ुद को मैंने डरते देखा है !!

अब तो तौबा, कि यकीं न करना किसी पर भूलकर भी कभी,
जब से, तोड़ कर दिल लोगों को यूँ दिल्लगी करते देखा है !!
© Mayuri Shah
@Mayuri1609
@Writco