"कर्ज़ कुंड"
दिल मे एक सरगम सी सजी,
सपनो की रानी की बारी आई,
एक एक ईंट सजाया उनके मन से,
जिसने जीने मरने की संग कसमें खाई।
सोचा ये तो अपनी है,
हर डगर पर मेरा साथ देगी,
जब जब लड़खड़ाएंगे कदम मेरे,
हाथों में अपना हाथ देगी।
बन्द किया आंखों को मैंने,
प्रेम सागर में डूब जाने को,
लाखों कर्ज़ लिया उसके लिए,
उसके सपने को हकीकत बनाने को।
हर जगह खुशी का उसके,
कोई भी पैमाना ना था,
मेरे लिए उसके सिवा,
संसार मे कोई नजराना ना था।
2 वर्ष ऐसे ही बीत गए,
अब परिवार बढ़ाने की बारी थी,
जिनसे लिए थे पैसे,
उनको चुकाने की बारी थी।
संतान प्राप्ति की सूचना ने,
मुझे हर्ष विभोर किया,
प्रेम चढ़ा फिर ऊंची चोटी पर,
दोनो ने एक दूजे के दिल मे शोर किया।
अब कर्ज़ चुकाने की घड़ी आयी,
जीवनसाथी को सारी बात बताई,
धीरे से उनके हृदय में विष किसी ने घोला,
मैं उनको धोखा नही दूंगा सीना ठोक के बोला।
कभी वो मान जाती बात मेरी,
कभी अंध विरोध होने लगा,
निर्दोष होने के बावजूद भी,
संतान रक्षा हेतु छुपकर रोने लगा।
मनोस्थिति संगिनी की प्रतिदिन बिगड़ने लगी,
भय के मारे मेरी धमनियों कंपन्न करने लगी,
आवेश में माँ के घर वो चली गयी,
बेइज्जती हुई बहुत ओर आत्मा छली गयी।
3 महीने पश्चात मैंने उनको घर मे लाया,
पूरे सेवा भाव में सन्तान सुख को पाया,
खुशी का माहौल चारो ओर छा गया,
ऐसा लगा मानो अच्छा वक्त लौट के आ गया।
धीरे धीरे...