...

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तलाश किसी की...
जबसे रूबरू हुई मैं दुनियां से
मैं ख़ुद कभी खोई नही

जो भी मिलकर दूर हुए मुझसे
मैं उनको तलाशती रही

गम नहीं किसी के दूर जाने का
सबकी अपनी फ़ितरत रही

रिश्तों को कच्ची डोर से बांधा नहीं
हमेशा मजबूत गांठ ही रही

ख़ुद को ही कुसूरवार ठहरा लिया हमनें
दूसरों से कोई शिकायत ना रही !!