समय भी हमसे रूठ गया
"जाने कब से पड़ा धरा पर
सांसें गिनता रुक- रुक कर।
जीवन तड़प रहा बिन आशा
ऑंखें टिकी रहीं पथ पर।।
आहट होती जब यादों की
टीस उभरकर आंसू बनते।
सपना बनता बेबस जीवन
सुप्त व्यथा जब-जब हैं जगते।।
छला गया...
सांसें गिनता रुक- रुक कर।
जीवन तड़प रहा बिन आशा
ऑंखें टिकी रहीं पथ पर।।
आहट होती जब यादों की
टीस उभरकर आंसू बनते।
सपना बनता बेबस जीवन
सुप्त व्यथा जब-जब हैं जगते।।
छला गया...