आसमान
छप्पर के अंबर तले
देखते थे कपास के पकौड़ो बिखरते हुए, कभी बिगड़ते हुए कभी पिघलते हुए
मेघ रूप में बरसते हुए
कभी आराम हराम करते हुए ।
उड़ते तो थे हम बचपन से
कभी बाड़े पे , कभी आसमान में
कभी तितली , कभी सतरंगों के पीछे
ऐनक थे हमारे अतरंगे से ।
एक अलग चहक थी ,
हमारी अलग ललक थी ,
कुछ करना चाहते थे ,
पता नहीं क्या होना चाहते...
देखते थे कपास के पकौड़ो बिखरते हुए, कभी बिगड़ते हुए कभी पिघलते हुए
मेघ रूप में बरसते हुए
कभी आराम हराम करते हुए ।
उड़ते तो थे हम बचपन से
कभी बाड़े पे , कभी आसमान में
कभी तितली , कभी सतरंगों के पीछे
ऐनक थे हमारे अतरंगे से ।
एक अलग चहक थी ,
हमारी अलग ललक थी ,
कुछ करना चाहते थे ,
पता नहीं क्या होना चाहते...