...

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गुमनाम रात की सुबह
मेरी इस बेपाक मुहब्बत की..
चश्मदीद गवाह है वो..।।
जितने भी ज़ख्म दिए है मुझे दुनिया ने..
उन सभी ज़ख्मों की इकलौती दवा है वो..।।

इस गुमनाम रात की..
महकती सुबह है वो..।।

मचलती धूप में झुलसते बदन को..
राहत दिलाती हवा है वो..।।
पतझड़ में जो हरयाली लाये..
बरसात की वो घनघोर घटा है वो..।।

इस गुमनाम रात की..
महकती सुबह है वो..।।

© RIP_aRyA