गजल - १०
दूर तक ढूंढती रही उसको मेरी नज़रें
वो तो भूल जाने का हुनर रखता है !
जाने कितने राज़ है उसके दिल मे
गम में वो मुस्कुराने की हुनर रखता है !
कैसे बहकने से खुद को अब रोकूँ मैं
वो होंठो से जाम पिलाने की हुनर रखता है !
उसको आवाज दूँ या उससे लिपट जाऊं मैं
वो दूरियों में भी तड़पाने का हुनर रखता है !
भींगता रहता...
वो तो भूल जाने का हुनर रखता है !
जाने कितने राज़ है उसके दिल मे
गम में वो मुस्कुराने की हुनर रखता है !
कैसे बहकने से खुद को अब रोकूँ मैं
वो होंठो से जाम पिलाने की हुनर रखता है !
उसको आवाज दूँ या उससे लिपट जाऊं मैं
वो दूरियों में भी तड़पाने का हुनर रखता है !
भींगता रहता...