...

2 views

आज का गुरु
कह जाऊं सच गर मैं कभी और ज़माना बुरा भी न माने तो बात ही क्या,
बात मेरे गुरुओं की हो, और तारीफें भी न की जाए तो बात ही क्या।
बदलते समाज का आइना देख, गुरु बदल भी जाएं तो बात ही क्या ।
शिक्षा देने से पहले ही गुरु दक्षिणा ले भी ली जाए तो बात ही क्या।


जात-पात ,ऊंच-नीच का चादर ओढ़ चले गुरु ,न जाने किस शिक्षा की बात करते हैं।
कोई दूजा इनसे आगे न निकल जाए ये शायद इस बात से ही डरते हैं।

भेद-भाव का मार्ग अपना ये अपनों को आगे करते हैं।
अर्जुन पर ही टिकती है नजरें इनकी, एकलव्य को दर किनार कर देते हैं।
भाई-भतीजा वाद में जीते , अपनी मर्यादा ये भूल चुके ,
शब्दों के विषैले बाण छोड़ते, गरिमा को स्वयं ही अपने ताक में रख चुके।

मंचासीन गुरु शब्दों के कुशल तीर चलाते हैं,
उतर जाएं मंच से फिर खुद ही घायल हो जाते हैं।


शिक्षा का मोल नहीं इनके, ये दिखावे में जिए जा रहे,
उपनाम को बढ़ावा देने में माहिर, समाज को दूषित अपने किये जा रहे।

व्यंग्य नहीं सच्चाई है ये ,जो आज मैंने जाना है।
एक मछली सारे तालाब को मैला करती है ,ये किस्सा भी तो काफी पुराना है।

इनका विरोध करने की हिम्मत न ही कोई कर पाता,
क्या करूँ उसी समाज की हूँ मैं भी, बुरा मुझसे न देखा अब जाता।

Glory❤️

© All Rights Reserved